शारीरिक विकास, क्रियात्मक विकास एवं मानसिक विकास|Physical development, functional development and mental development in Hindi

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शारीरिक विकास से तातपर्य बालकों की उम्र के अनुसार शारीरिक आकार, शारीरिक अनुपात(Body Proportions), हड्डियां, मांसपेशियाँ, दाँत तथा तंत्रिका-तंत्र (Nervous System) के समुचित विकास से होता है



प्रारंभिक बाल्यावस्था में कुछ बालकों का शारीरिक गठन (Body Build) मोटा होता है वे एण्डोमॉर्फिक कहलाते है, कुछ का शारीरिक गठन दुबला-पतला होता है, वे ऐकटोमॉर्फिक गठन के होते है


क्रियात्मक विकास से तात्पर्य बालकों में उनकी मासपेशियों तथा तंत्रिकाओं के समन्वित कार्य द्वारा अपनी शारीरिक क्रियाओ पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त करने से होता है



बालकों के क्रियात्मक विकास के प्रयोगात्मक अध्ययनों से प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर क्रियात्मक विकास मूलतः मस्तकाधोमुखी विकास क्रम के अनुसार अर्थात सिर से पैर की दिशा में होता पाया गया है

मानसिक विकास से तात्पर्य व्यक्ति के जन्म से परिपक्वता तक कि मानसिक क्षमताओं एवं मानसिक कार्यो के उत्तरोत्तर प्रकटन एवं संगठन की प्रक्रिया से होता है


मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक विकास की तीन अवस्थाओं का वर्णन किया है- प्रतिवर्त्त या सहज क्रियाओं की अवस्था, इच्छित या ऐच्छिक क्रियाओं की अवस्था तथा उद्देश्यपूर्ण कार्य करने की अवस्था







जिंदगी के प्रथम पांच साल में बालकों के मानसिक विकास, समाज का विकास, दिकस्थान संप्रत्यय, भार का संप्रत्यय, समय का संप्रत्यय तथा आत्म-संप्रत्यय, योन-भूमिका संप्रत्यय, सामाजिक संप्रत्यय इत्यादि महत्वपूर्ण है


प्रारंभिक बाल्यावस्था (Early Childhood) में बालकों में होनेवाले मानसिक विकास की प्रमुख विशेषताओं में अन्वेषणात्मक प्रवृत्ति का विकास, जीवन-मृत्यु का संप्रत्यय, दिकस्थान संप्रत्यय, चिंतन एवं तर्क इत्यादि प्रमुख है


उत्तर बाल्यावस्था (Later Childhood) में बालकों में होनेवाले मानसिक विकास की विशेषताओं में ठोस एवं संक्रियात्मक चिंतन, जीवन-मृत्यु का संप्रत्यय मृत्यु के बाद जीवन का संप्रत्यय, मुद्रा सबंधी संप्रत्यय का विकास आदि महत्वपूर्ण है



किशोरावस्था में होनेवाले मानसिक विकास की विशेषताओं में चिंतन में औपचारिक संक्रियाएँ, एकाग्रचित्तता, तथ्यों के सामान्यीकरण की क्षमता, दुसरो के साथ संचार करने की क्षमता, समझ एवं पकड़ की क्षमता में वृद्धि, स्मृति शक्ति का विकास, नैतिक संप्रत्ययों की समझ, समस्या का अमूर्त संकेतो द्वारा समाधान करने की क्षमता तथा बाहरी दुनिया के प्रमुख व्यक्तित्व एवं परिस्थितियों के साथ तादात्म्य करने की क्षमता आदि प्रधान है




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