B.Ed, CTET
जीन पियाजे ने बालकों के संज्ञात्मक विकास को चार अवस्थाओं में बांटा है-
संवेदी-पेशीय अवस्था:- जन्म से 24 महीने
प्राकसंक्रियात्मक अवस्था:- 2 वर्ष से 7
वर्ष
ठोस संक्रियात्मक की अवस्था:- 7 वर्ष से 12
वर्ष
औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था:- 12 वर्ष से वयस्कावस्था
पियाजे के सिद्धांत के संप्रत्ययों में अनुकूलन, संरक्षण, साम्यधारण,
स्कीम्स, स्कीमा तथा विकेन्द्रन प्रमुख है।
पियाजे ने संवेदी पेशीय अवस्था को छह उप- अवस्थाओं में विभाजित
किया है-
प्रतिवर्त क्रियाओं की अवस्था- जन्म से 30 दिन
प्रमुख वृतीय प्रतिक्रियाओं की अवस्था- 1 महीने से 4 महीने
गौण वृतीय प्रतिक्रियाओं की अवस्था- 4 से 8 महीने
गौण स्किमेटा के समन्वय की अवस्था- 8 महीने से 12 महीने
तृतीय वृतीय प्रतिक्रियाओं की अवस्था- 12 महीने से 18 महीने
मानसिक संयोग द्वारा नये साधनों की खोज की अवस्था- 18 महीने से 24 महीने
पियाजे ने प्राकसंक्रियात्मक अवस्था को दो भागों में बांटा है-
प्राकसंक्रियात्मक अवधि तथा अन्तर्दर्शी अवधि।
प्राकसंक्रियात्मक अवधि- 2 वर्ष से 4
वर्ष की होती है। इस अवस्था
मे बालक सूचकता विकसित कर लेते है।
अन्तर्दर्शी अवधि- 4 वर्ष से 7
वर्ष की होती है। इस अवधि
में बालको का चिंतन एवं तर्कणा पहले से अधिक परिपक्व हो जाते है।
ठोस संक्रिया की अवस्था- 7वर्ष से 12
वर्ष तक होती है। इस अवस्था
मे बालक ठोस वस्तुओ के आधार पर आसानी से मानसिक संक्रियाएँ करके समस्या का समाधान
कर लेता है।
औपचारिक संक्रिया की अवस्था- 11 वर्ष से प्रारंभ होकर वयस्कावस्था तक चलती
है।
कोहलबर्ग के अनुसार नैतिक विकास की तीन मुख्य अवस्थाएं होती है
और इन अवस्थाओं का क्रम निश्चित होता है। ये अवस्थाएं है-
* प्राकरूढिगत नैतिकता का स्तर ( 4 वर्ष से 10 वर्ष)
* रूढ़िगत नैतिकता का स्तर ( 10 वर्ष से 13 वर्ष)
* उत्तररूढ़िगत नैतिकता का स्तर
प्राकरूढिगत नैतिकता स्तर में नैतिक
तर्कणा दूसरे लोगों के मानकों से निर्धारित होता है। बच्चे किसी
व्यवहार को अच्छा
या बुरा उसके भौतिक परिणामो के आधार पर करते है।
रूढ़िगत नैतिकता स्तर में बच्चे उन सभी क्रियाओ को सही समझता है
जिससे दूसरों की मदद होती है
तथा दूसरे लोग उसे अनुमोदित करते है या जो समाज के
नियमों के अनुकूल होता है।
उत्तररूढिगत नैतिकता स्तर में बच्चों में नैतिकता आचरण पूर्णतः
आंतरिक नियंत्रण में होता है। यह नैतिकता का सबसे उच्च स्तर होता है और इसमें
नैतिकता का ज्ञान बच्चों में होता है।
वाइगोत्सकी
ने बच्चों के संज्ञात्मक
विकास में सामाजिक कारकों एवं भाषा को महत्वपूर्ण बतलाया है।
वाईगोत्सकी के संज्ञात्मक विकास के सिद्धांत को सामाजिक- सांस्कृतिक
सिद्धांत भी कहा जाता है।
वाइगोत्सकी ने वास्तविक विकास के स्तर तथा संभाव्य विकास के
स्तर के बीच के अंतर को समीपस्थ विकास का क्षेत्र कहा है।
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