बाल - केन्द्रित शिक्षा का उद्देश्य बालक के
मनोविज्ञान को समझते हुवे शिक्षण की व्यवस्था करना तथा उसकी अधिगम सबंधी कठिनाइयों
को दूर करना है।
बाल केन्द्रित शिक्षा के अंतर्गत बालक की
शारीरिक और मानसिक योग्यताओं के विकास के आधार पर अध्ययन किया जाता है।
बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम में बालक की रुचियों, आवश्यकताओं एवं योग्यताओं के आधार पर पाठ्यक्रम का निर्माण
किया जाता है।
प्रगतिशील शिक्षा का उद्देश्य बालकों में
शिक्षा के माध्यम से जनतंत्रीय मूल्यों की स्थापना करना है।
जॉन डीवी का प्रगतिशील शिक्षा के विकास में
सराहनीय योगदान है। उन्होंने प्रगतिशील शिक्षा में दो तत्त्वों को विशेष
महत्वपूर्ण माना है- रुचि ओर प्रयास।
बुद्धि-निर्माण तथा बहुआयामी बुद्धि:-
बुद्धि एक सामान्य मानसिक क्षमता है। इसे कई तरह की क्षमताओं का एक संपूर्ण योग माना गया है जिसके सहारे व्यक्ति उद्देश्यपूर्ण क्रियाएँ करता है, विवेकशील चिंतन करता है तथा वातावरण के साथ प्रभावकारी ढंग से समायोजन करता है।
थार्नडाइक ने बुद्धि के तीन प्रकार बतलाये है
सामाजिक बुद्धि, मूर्त बुद्धि, अमूर्त बुद्धि।
मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि की अभिव्यक्ति
बुद्धि लब्धि या IQ के रूप में की है।
मानसिक आयु को तैथिक आयु से विभाजित करके
उसमें 100 से गुणा करने के बाद जो मान प्राप्त होता है, उसे बुद्धि लब्धि कहा जाता है।
बुद्धि की माप भिन्न- भिन्न तरह के परीक्षणों
द्वारा की जाती है। इन परीक्षणों में बीने-साइमन परीक्षण, वेशलर बुद्धि परीक्षण, कैटेल संस्कृति-मुक्त बुद्धि परीक्षण, रेवेन प्रोग्रेसिव मेट्रिसेज इत्यादि मुख्य है।
मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि परीक्षणों को कई
भागों में बांटा है जिनमे प्रमुख है-
*शाब्दिक
बुद्धि परीक्षण *अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण
*क्रियात्मक
बुद्धि परीक्षण *अभाषाई बुद्धि परीक्षण
मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि के स्वरूप की
व्याख्या करने के लिए दो तरह के प्रमुख सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है कारक
सिद्धान्त तथा प्रक्रिया- प्रधान सिद्धान्त।
कारक सिद्धान्त में स्पियरमेन का सिद्धांत, थर्स्टन का सिद्धान्त, थार्नडाइक एवं गिल्फोर्ड का सिद्धान्त तथा पदानुक्रमिक
सिद्धान्त को रखा गया है।
प्रक्रिया-प्रधान सिद्धान्त में पियाजे का
सिद्धान्त, स्टर्नबर्ग का सिद्धान्त, जेन्सन का सिद्धान्त प्रमुख है।
बहुकारक सिद्धान्त में थार्नडाइक एवं
गिल्फोर्ड के सिद्धान्त को रखा गया है।
पियाजे के अनुसार "बुद्धि एक ऐसी
अनुकूली प्रक्रिया है जिसमें जैविक परिपक्वता का पारस्परिक प्रभाव तथा वातावरण के
साथ कि गई अंतः क्रिया, दोनों ही
सम्मिलित होते है।"
पियाजे का मत था कि बौद्धिक विकास
संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं पर निर्भर करता है जैसे-प्रकृति के नियम को समझना, व्याकरण के नियम को समझना तथा गणितीय नियमों को समझना
इत्यादि।
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