समाजीकरण की प्रक्रियाएँ|Concepts of Socialisation

Apni Hindi
0

 

विद्यालय में समाजीकरण की प्रक्रिया

 

 समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति उसके समूह मानकों के अनुसार वास्तविक व्यवहार का विकास करता है।


सामाजिक विकास का अर्थ उस योग्यता को अर्जित करना है जिसके द्वारा सामाजिक प्रत्याशाओं के अनुसार व्यवहार किया जा सके।



सामाजीकरण में तीन प्रक्रियाऐंसम्मिलित है-  (a) वह प्रक्रिया जिससे बालक में समाज द्वारा मान्य व्यवहार का विकास होता है। (b) बालक समाज मे मान्य रोल्स सीखता है। (c) सामाजिक अभिवृत्तियों का विकास।



सामाजिक प्रौढ़ता का अर्थ- समाज के मूल्यों, नियमो, अभिवृत्तियों और सामाजिक व्यवहार तथा सामाजिक रोल्स आदि की प्रौढ़ता।



बहिर्मुखी व्यक्तियों में सामाजिक प्रौढ़ता अंतर्मुखी व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक पायी जाती है।

सामाजिक अनुरूपता  का अर्थ है समाज के मानकों , आदर्शो तथा मूल्यों इत्यादि के अनुरूप व्यवहार करना।



सामाजिक विकास और सामाजिक अनुरूपता में धनात्मक सह-सबन्ध है।


बालक में विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों और व्यक्तियों के साथ बालक का समायोजन जितना अच्छा होगा, उसका सामाजिक विकास भी उतना ही अच्छा होगा।


सामाजिक अन्तः क्रिया का अभिप्राय है दो या दो से अधिक व्यक्तोयों के मध्य पारस्परिक क्रियाएँ।

संगठनात्मक सामाजिक अन्तः क्रियाएँ - सहयोग, सहानुभूति, व्यवस्थापन, सात्मीकरण इत्यादि।



विघटनात्मक सामाजिक अन्तःक्रयाएँ है तनाव, संघर्ष इत्यादि।
बालक का सामाजिक विकास उतना अधिक अच्छा माना जाता है जितना ही अधिक वह सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेता है।


बचपनावस्था में बालकों में होनेवाली सामाजिक अनुक्रियाएँ- अनुकरण, आश्रितता, ईर्ष्या, सहयोग, शर्माहट, ध्यान आकर्षित करना, अवरोधी व्यवहार।



पूर्व बाल्यावस्था में होनेवाली सामाजिक अनुक्रियाएँ- आक्रामकता, झगड़ा, चिढ़ना, निषेधात्मक व्यवहार, सहयोग, ईर्ष्या, उदारता, सामाजिक अनुमोदन की इच्छा, आश्रितता, बालकों में मित्रता, सहानुभूति।


उत्तर बाल्यावस्था में होनेवाली सामाजिक अनु क्रियाएँ-  सामाजिक अनुमोदन, सुजाव ग्रहणशीलता, स्पर्धा ओर प्रतियोगिता, खेल, पक्षपात ओर सामाजिक विभेदीकरण, उत्तरदायित्व, सामाजिक सूझ, यौन विरोधी भाव।


सामाजिक विकास को प्रभावित करनेवाले कारक-  शारीरिक बनावट और स्वास्थ्य, परिवार, पड़ोस ओर वातावरण, मनोरंजन, व्यक्तित्व, संवर्धन अभिप्रेरक, संवेगात्मक विकास, हीनता की भावना, साथी समूह।




किशोरावस्था में बालकों में होनेवाले सामाजिक परिवर्तन-
  साथियों के समूह का प्रभाव, सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन, नया सामाजिक समूह, दोस्तों में चयन का नया मूल्य, सामाजिक स्वीकृति में नया मूल्य इत्यादि।


ब्रोनफेनब्रेन्नर ने परिस्थितिपरक सिद्धान्त की व्याख्या बच्चे के विकास के सामाजिक संदर्भ में किया है। इस सिद्धांत के अनुसार पर्यावरणी तल के पाँच स्तर होते है- लघुमण्डल, मध्यमण्डल, बाह्यमण्डल, वृहत्तमण्डल, घटनामण्डल।



इरिक्सन का मनो सामाजिक सिद्धान्त में पूरे जीवन-अवधि में विकास को आठ अवस्थाओं में बांटा गया है।


सामाजिक विकास में शिक्षकों की भूमिका काफी अवधि है, क्योंकि शिक्षकगण बालकों के सामाजिक विकास को सीधे प्रभावित करते हैं।

समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिससे बच्चे और वयस्क सीखते है परिवार से, विद्यालय से और श्रेष्ठ जनों से।




प्रगतिशील शिक्षा का उद्देश्य  Click Her




जीन पियाजे ने बालकों के संज्ञात्मक विकास को चार अवस्थाओं में बांटा Click Her

Tags:

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

Please do not Enter any Spam Link in the Comment box.

एक टिप्पणी भेजें (0)