आनुवंशिकता तथा वातावरण का प्रभाव|Anuvanshikta ka Prbhaav

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आनुवंशिकता से तातपर्य शारीरिक एवं मानसिक गुणों के संचरण से होता है, जो माता-पिता से बच्चों में जीवन के माध्यम से प्रवेश करता है।


वातावरण का तातपर्य व्यक्ति में उन सभी तरह की उत्तेजनाओं से होता है जो गर्भधारण से मृत्यु तक उसे प्रभावित करती है।


1950
ई. में विशेषज्ञों द्वारा यह पता लगाया कि जिन में मुख्य रूप से दो जैविक अणु होते हैं, जिन्हें DNA (Deoxyribonucleic Acid) तथा RNA (Ribonucleic Acid) कहा जाता है।



जिन द्वारा आनुवंशिक गुणों का संचरण होता है।
मानव जीवन की शुरुआत एक गर्भित अंडाणु से होती है। एक गर्भित अंडाणु में क्रोमोजोम्स के 23 जोड़े होते है। इस 46 क्रोमोजोम्स में 23 क्रोमोजोम्स माँ से तथा 23 क्रोमोजोम्स पिता से मिलता है।


क्रोमोजोम्स में एक ही विशेष संरचना होती है, जिसे जिन कहा जाता है। इसी जीन द्वारा माता-पिता या अपने पुरखों के गुण अपने शिशुओं में आते है।

बालकों की शिक्षा में आनुवंशिकता एवं वातावरण का महत्वपूर्ण स्थान है। बालकों की आनुवंशिकता एवं वातावरण से अच्छी तरह परिचित होने पर शिक्षक बालकों के बौद्धिक विकास, समायोजन तथा अनुशासन सबंधी समस्याओं को हल करने में समर्थ रहते हैं।



आनुवंशिकता का नियम (Law of Haredity) (जिसे मेंडल ने अपने शोध के आधार पर प्रतिपादित किया था) से यह पता चलता है कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में व्यक्तियों में गुणों में विभिन्नता क्यों और कैसे होती है?

मानव व्यक्तित्व आनुवंशिकता और वातावरण की अंत: क्रिया का परिणाम है।

व्यक्तित्व एवं बुद्धि में वंशानुक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका है।

 


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