पिछड़े, विकलांग तथा मानसिक रूप से पिछड़े बालक
पिछड़े बालकों से तातपर्य वैसे बालको से है जो शैक्षिक रूप से मंदित होते है।
बालकों में पिछड़ेपन का मुख्य कारण बौद्धिक क्षमता की कमी, वातावरण का प्रतिकूल प्रभाव, शारीरिक दोष,
स्वभाव-सबंधी दोष, कर्तव्यत्यागिता इत्यादि है।
साधारण मानसिक मंदबुद्धि के बालक की बुद्धि लब्धि 52-67 के बीच होती है। ऐसे बालकों के वयस्क
होने पर इनका बौद्धिक स्तर 8 से 11 वर्ष के सामान्य बालक के बौद्धिक स्तर के बराबर होता है।
अल्पबल मानसिक मंदबुद्धि के बालक की बुद्धिलब्धि 36 से 51 तक होती है। ऐसे बालकों की सिखने की
दर धीमी होती है।
गंभीर मानसिक मंदबुद्धि के बालक की बुद्धिलब्धि 20 से 35 के बीच होती है। ऐसे बालकों को आश्रित
बालक कहा जाता है।
गहन मानसिक मंदबुद्धि के बालक की बुद्धिलब्धि 20 से नीचे होती है।
अपराधी बालक वह है जो सामाजिक, आर्थिक, नैतिक या शैक्षणिक नियम का उल्लंघन करता है।
प्रतिभाशाली, सर्जनात्मक तथा विशेष आवश्यकता वाले बालक
प्रतिभाशाली बालक वे है जिनकी बुद्धिलब्धि 120 से ऊपर होती है।
प्रतिभाशाली बालक वह है जो लगातार उच्च स्तर का कार्य निष्पादन
किसी भी सामान्य प्रयास के क्षेत्र में
प्रदर्शित करता है।
गिल्फोर्ड ने 'अभिसारी चिंतन' शब्द का प्रयोग सृजनात्मकता के लिए किया है।
सृजनशीलता के पोषण के लिए अध्यापक को ब्रेल स्टॉर्मिंग विधि की
सहायता लेनी चाहिए।
सृजनात्मक शिक्षार्थी वह है जो पाशर्व चिंतन और समस्या समाधान
में अच्छा है।
सृजनशीलता वह अवधारणा है जिसमे उपलब्ध साधनों से नवीन विचारों
को जन्म दिया जाता है।
मौलिकता, धारा-प्रवाहिता तथा लचीलापन इसके प्रमुख
तत्व है।
पढ़ने की अक्षमता सबंधी विकार को डिस्लेक्सिया कहते है। ऐसे बालक
'चोटी' को 'रोटी' एवं 'दरवाजा' को
'वाजा' पढ़ते है।
गणित सबंधी अधिगम अक्षमता के विकार को डिस्केलकुलिया (Dyscalculia) कहते है।
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