बच्चा: एक
समस्या-समाधक तथा वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप में
शिक्षा का
दायित्व होता है कि वह बालक का उस स्तर तक विकास करने में सहायक हो जिसको बालक
अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके तथा सभी प्रकार की परिस्थितियों में अपने आपको
ढाल सके।
स्किनर ने
वैज्ञानिक विधि से समस्या- समाधान में छह चरणों का अनुसरण किया।
बालक एक अन्वेषक
के रूप में समस्याओं की खोज निम्नलिखित रूप से करता हैं- निरीक्षण, तुलना, प्रयोग,
प्रदर्शन, सामान्यीकरण ओर प्रमाणीकरण।
संज्ञान तथा संवेग
संज्ञान से तातपर्य संवेदी सूचनाओं को ग्रहण करके उसका रूपांतरण, विस्तारण, संग्रहण, पुनर्लाभ तथा उसका समुचित प्रयोग करने से होता है।
संज्ञानात्मक विकास के तीन सिद्धान्त महत्वपूर्ण है- पियाजे, वाइगोत्सकी तथा ब्रूनर का सिद्धान्त।
पियाजे ने
संज्ञानात्मक विकास को चार भागों में बांटा है।
ब्रूनर ने शिशु
अनुभूतियों के मानसिक रूप को तीन तरीकों द्वारा बताया है- संक्रियता, दृश्य प्रतिमा ओर सांकेतिक।
वाईगोस्तकी ने
बच्चों के संज्ञानात्मक विकास में सामाजिक कारकों एवं भाषा को महत्वपूर्ण बताया
है।
वाईगोस्तकी के
संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत को सामाजिक, सांस्कृतिक सिद्धान्त कहा जाता है।
अभिप्रेरण ओर अधिगम
अभिप्रेरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शिक्षार्थी की आंतरिक शक्ति वातावरण के विभिन्न लक्ष्य वस्तुओं की और निर्देशित होती है।
शारीरिक
अभिप्रेरण जन्म से ही बालक में मौजूद रहते हैं जैसे नींद, भूख, प्यास,
दर्द-परिवर्जन
इत्यादि।
शारीरिक
अभिप्रेरण से बालकों में समस्थिति (Homeostasis) अर्थात शरीर के अंदर संतुलन बनाये रखने का
गुण होता है।
अर्जित
अभिप्रेरण जन्म के बाद बालक सीखता हैं।
मेसले के
अभिप्रेरणा के सिद्धान्त को आवश्यकता का सिद्धान्त भी कहा जाता है।
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