ज्ञान का अर्थ:-
ज्ञान शब्द की व्यापक परिभाषा देना
कठिन है, क्योंकि दर्शन की प्रत्येक विचारधारा ने इसे अपने ढंग से
परिभाषित किया है। जिसका सबंध द्रव्य एवं सत्य से होता है।
ज्ञान प्रकृति प्रशन्न तत्व है जो जीवन की उत्पत्ति के साथ ही प्रारंभ होता है। भगवदगीता में मन के तिन स्वरूपों का वर्णन किया गया है- ज्ञानात्मक, भावात्मक, क्रियात्मक।
ज्ञान वास्तविकता के प्रति जागरूकता
एवं विशे पहलुओं के प्रति समझ है. यह वास्तविकता के लिए तर्क की प्रक्रिया द्वारा
ज्ञात की गयी शुद्ध जानकारी है। ज्ञान की
परम्परागत अवधारणा यह है की ज्ञान के लिए निम्न बातों का होना आवश्यक है-
1.सत्य:-
सत्य ज्ञान का आधार है।किसी भी असत्य वस्तु के विषय में जानना ज्ञान की
श्रेणी में नहीं आता, उसका सत्य
होना अति आवश्यक है. सत्य की खोज को भी ज्ञान की खोज कह सकते है। महात्मा बुद्ध ने
सत्य की खोज करने का प्रयास किया. सत्य के कारणों के विषय में जानने का प्रयास
किया, अनेक ऐसे सत्य उनके समक्ष प्रस्तुत किए जिसके विषय में वह
नहीं जानते थे. जब उनका सत्य से परिचय हुआ तब उसी प्रक्रिया को “बुद्ध का ज्ञान
प्राप्ति” कहा गया उस सत्य को पाना ज्ञान प्राप्त करना माना गया।
महान दार्शनिक अरस्तु का कथन है की, “किसी ऐसी वस्तु
के विषय में कहना जो असत्य है या उसके विषय में यह कहना जो वह वास्तव में नहीं है-
असत्य है. किसी वस्तु के विषय में जो वास्तव में जो नहीं है, यह कहना की वह नहीं है, सत्य है।”
2.आस्था:-
ज्ञान का दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु विश्वास है, क्योंकि व्यक्ति उस वस्तु या विषय के बारे में कुछ भी नहीं जान सकता, जिसमे उसकी आस्था न हो।किसी वस्तु के विषय में यह कहना की
में अमुक वस्तु के विषय में जानता हूँ परंतु में यह नहीं मानता की वह सत्य है, असत्य होगा।
3. तर्कसंगतता:-
तर्कसंगतता किसी भी ज्ञान का तीसरा महत्वपूर्ण गुण है. कोई भी ज्ञान तब ही
सत्य माना जाता है अथवा उस पर लोगों को तभी विश्वास होता है जब वह बात तर्कसंगत
होगी अथवा उसे तर्क की कसोटी पर कसकर सत्य प्रमाणित किया गया हो. किसी भी ज्ञान को
सत्य मानने से पूर्व उसकी सत्यता को पूर्ण रूप से प्रमाणित करना होगा।
ज्ञान के लिए उपर्युक्त तिन गुणों का होना
आवश्यक है. ज्ञान से तात्पर्य ज्ञाता और ज्ञेय के साथ इन्द्रियों के माध्यम से
संपर्क होता है, तो ज्ञेय
पदार्थ के सबंध में एक चेतना होती है, जिसका
अस्तित्व है और उसके विशेष गुण है इसी प्रकार की चेतना को ज्ञान की संज्ञा दी जाती
है।
ज्ञान के सबंध में दो प्रमुख विचार है-
(i)
वास्तविकता ज्ञान का स्वरूप
(ii)
सत्य अथवा द्रव्य का ज्ञान
ज्ञान का सबंध किसी कार्य के करने की योग्यता एवं क्षमता से होता है, जैसे – पढना, लिखना, बोलना, सीखना इत्यादि. ज्ञान का पक्ष वस्तु के गुणों एवं उसकी
योग्यताओ, विशेषताओं से सबंधित होता है. यह पक्ष कुछ प्रतिज्ञप्तियों से सबंधित
होता है यह प्रदर्शित करता है की वास्तविक ज्ञान तब होता है जब उसको उस वस्तु को
उसके वास्तविक रूप में दिखाया जाए।जैसे – छात्रो को वास्तु का प्रत्यक्ष दर्शन
कराकर।
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